इराक़ पर अमेरिकी हमले के दो दशक और मौजूदा हालात
2003 में अमेरिका के नेतृत्व में इराक़ पर किया गया हमला (जिसने 20 मार्च को दो दशक पूरे किए) दूसरे देश में इकतरफ़ा सैन्य हस्तक्षेप के गंभीर परिणामों का सबसे अच्छा और स्पष्ट उदाहरण है। हमले और इसके बाद की अराजकता न केवल बड़े पैमाने पर मौत (कुछ अनुमानों के अनुसार दस लाख से अधिक इराक़ियों) और विनाश का कारण बनी, बल्कि इसने एक बेहद अलोकप्रिय शासन का निर्माण भी किया।
बड़े पैमाने पर अब यह माना जाता है कि इराक़ में अमेरिका के इकतरफ़ा क़दम के पीछे इस देश के प्राकृतिक तेल और गैस भंडार पर नियंत्रण करना ही असली उद्देश्य था। हालाँकि, जॉर्ज बुश के अमेरिकी प्रशासन, जिसके तहत ये हमला हुआ था, ने इसे वैश्विक सुरक्षा और लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए एक आवश्यक क़दम के रूप में पेश करने की हर ज़रूरी कोशिश की।
इराक़ियों के लिए परिणाम विनाशकारी थे। सांप्रदायिक संघर्षों के बाद प्रतिरोध का युद्ध हुआ, जो अंततः इस्लामिक स्टेट या आईएसआईएस के उदय के रूप में समाप्त हुआ। इराक़ पर हमले के बाद, कभी न ख़त्म होने वाली हिंसक घटनाओं की एक श्रृंखला सी बन गई जो आज भी बदस्तूर जारी है। इस लंबी अराजकता के बीच, लगभग 40 मिलियन इराक़ियों की दिन-प्रतिदिन की समस्याएं - ग़रीबी, बेरोज़गारी, स्वास्थ्य, और अन्य ऐसी तमाम चिंताएं - संबोधित नहीं की गई हैं।
युद्ध के असली उद्देश्य
अमेरिकी नेतृत्व वाला यह हमला पूरी तरह से निराधार दावे पर आधारित था। दावा था कि इराक़ "वेपन्स ऑफ मास डेसट्रकशन" के अपने भंडार के साथ वैश्विक सुरक्षा के लिए ख़तरा था। यह दावा अमेरिका की सैन्य व आर्थिक ताकत और प्रचार के साधनों पर उसके वर्चस्व के दम पर किया गया था।
संयुक्त राष्ट्र, अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप के दबाव से सहमत नहीं था, बावजूद इसके, उसने इकतरफ़ा कार्रवाई करने का फैसला किया। उसने अपने पश्चिमी सहयोगियों को युद्ध में शामिल होने के लिए मजबूर किया। इस क़दम को 'लोकतंत्र' की उनकी धारणाओं को बढ़ावा देने और 'वैश्विक आतंकवाद' के बढ़ते ख़तरे से निपटने के लिए ज़रूरी समझा गया था।
सही मायने में, युद्ध का असली उद्देश्य इराक़ी संसाधनों (उदाहरण के तौर पर तेल) पर अमेरिकी आधिपत्य स्थापित करना था। वैश्विक सुरक्षा सुनिश्चित करने के दावों की पोल तब खुल गई जब अमेरिकी सेना इराक़ पर पूरी तरह से कब्ज़ा करने के बाद भी ‘मास-डेसट्रकशन’ के लिए छिपे हुए हथियारों को नहीं ढूंढ पाई।
अबू ग़रीब के बारे में खुलासे और इसके बाद विकीलीक्स द्वारा किए गए खुलासे ने इराक़ में 'लोकतंत्र और मानवाधिकारों को बहाल करने' के इस तथाकथित मिशन का असली चेहरा दिखाया। विकीलीक्स ने, ग्वांतानामो बे और अन्य जगहों से जानकारी निकालने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली यातनाओं का पर्दाफाश किया। इसके अलावा विकीलीक्स ने ख़ुलासा किया कि तरह निर्दोष नागरिकों की हत्याएं की गईं, और इस युद्ध से अमेरिकी सैन्य-औद्योगिक परिसर द्वारा अरबों डॉलर का अप्रत्याशित लाभ अर्जित किया गया।
इराक़ में शासन की एक नई प्रणाली तैयार करते समय और अपने कब्ज़े के शुरूआती सालों में, अमेरिका ने आम तौर पर ज़्यादातर लोगों की इच्छा के ख़िलाफ़, देश और क्षेत्र में अपने हितों के प्रति सहानुभूति रखने वाले नेताओं का समर्थन किया। इसने बिना किसी ‘पॉपुलर-रूट्स’ वाले एक राजनीतिक अभिजात वर्ग को जन्म दिया, और देश के भीतर सांप्रदायिक विभाजन और संघर्षों को तेज़ कर दिया। एक विडंबनापूर्ण और अनपेक्षित परिणाम के रूप में, अमेरिका की इस गफ़लत ने ईरान को इराक़ी राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभारने का रास्ता तैयार किया।
इसी दौरान, लगातार होती हिंसा ने अमेरिका और उसके सहयोगियों को इराक़ में अपनी सैन्य उपस्थिति को मजबूत करने का एक सही अवसर प्रदान किया जिसे उसने कुछ वक़्त के लिए वापस ले लिया था।
आम इराक़ियों के लिए इसके मायने?
इस तथ्य के अलावा कि 2003 में अमेरिका के नेतृत्व में हमले, जंग और हिंसक संघर्ष के कारण सैकड़ों-हज़ारों इराक़ियों की मौत हुई और नौ मिलियन से ज़्यादा लोग विस्थापित हुए, इसने पूरी आबादी को प्रभावित करने वाली बड़ी और दीर्घकालिक समस्याओं को भी जन्म दिया।
इराक़ प्राकृतिक संसाधनों के मामले में एक समृद्ध देश है और 1991-92 में प्रतिबंधों से पहले यह तेल के सबसे बड़े उत्पादकों और निर्यातकों में से एक था। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़, हमले के दो दशक बाद और उन गंभीर प्रतिबंधों को हटाने के बाद भी, लाखों इराक़ी (लगभग एक चौथाई आबादी) आज भी ग़रीबी रेखा से नीचे रहते हैं। हाल के दिनों में राष्ट्रीय आय में वृद्धि के बावजूद यह दर बढ़ रही है। इसके अलावा शिक्षित युवाओं में बेरोज़गारी प्रमुख चिंताओं में से एक है।
कब्ज़े के तहत बनाए गए 2005 के संविधान में जिस तथाकथित लोकतंत्र की कल्पना की गई थी, वह अपनी जड़ें नहीं जमा पाया है। अमेरिका उन आधारहीन राजनेताओं को पोषित करने का प्रयास करता है जो पीढ़ियों से निर्वासन में रहे थे और बिना किसी प्रश्न के अपने हित की सेवा करने के लिए तैयार थे, जैसे कि नूरी अल-मलिकी, जो लगभग एक दशक तक प्रधानमंत्री रहे और अब भी सत्ता का आनंद लेते हैं। मलिकी को उन नेताओं में से एक माना जाता है जिन्होंने सत्ता में रहते हुए एक सांप्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ाया।
कुछ लोकप्रिय धारणाओं के मुताबिक़, सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व और सत्ता के बंटवारे के लिए एक टूल के रूप में व्यवसायिक ताकतों के तहत शुरू की गई Muhasasa प्रणाली के कारण इराक़ में भ्रष्ट और अक्षम नेतृत्व फलता-फूलता है। इराक़ियों के लिए, जिनमें से आधे युद्ध के बाद पैदा हुए थे, सांप्रदायिक कोटा ‘क्लाइंटिज़्म’ और ‘नेपोटिज़्म’ का आधार प्रदान करता है।
2019-21 का तिशरीन (Tishreen) आंदोलन इराक़ी समाज में इस पीढ़ीगत बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें मौजूदा राजनीतिक अभिजात वर्ग की लगभग पूरी तरह से अस्वीकृति है जो अमेरिका और अन्य अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय खिलाड़ियों की कठपुतली माने जाते हैं। इसके अलावा अक्टूबर 2021 में हुए पिछले राष्ट्रीय चुनावों के दौरान मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था के प्रति लोगों की उदासीनता भी देखी गई थी जब लोगों ने चुनाव में भाग लेने से इनकार कर दिया था।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :
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