''ढाई आखर प्रेम'': एक अनोखी पदयात्रा
आज के दौर में गांव गांव पैदल चलना, गांवों में ही सोना, वहीं लोगों से बातें करना, उनके गीत, नृत्य और कलाओं को जानना बूझना अपने संदेशों को उन तक गीतों और हाथ के बुने गमछों के मार्फत पहुंचाना, ये एक सनक या एक जुनून के सिवा और क्या हो सकता है।
मगर इसी जुनून को लेकर पूरे देश में एक अद्भुत यात्रा की कल्पना रची गई है। अलग अलग शहरों और प्रदेशों के लोग मिले, समाज में फैले अवसाद, नफरत और उदासी की जड़ें तलाशी गईं, इसी प्रक्रिया में खुद को भी परखा गया कि हम में क्या खामियां हैं, कहां से सीख सकते हैं। और फिर जवाब मिला वही पुराना, गांधी जी ने कहा था "लोगों के पास जाओ, गावों की ओर जाओ।"
और इस तरह एक अद्भुत यात्रा ने आकार लिया जिसका नाम कबीर से लिया गया "ढाई आखर प्रेम", जिसकी डिजाइन गांधी जी से ली गई और जिसके लक्ष्य में भगत सिंह जैसे नौजवानों की कल्पना का देश और समाज है - समानता पर, प्रेम पर आधारित समाज।
धीरे-धीरे आइडिया फैलने लगा, लोग खुद ब खुद जुटने लगे, कहीं गांधी जी के प्रपौत्र तुषार गांधी का संदेश आया तो उत्तर प्रदेश से प्रसिद्ध कवि और पूर्व सांसद उदय प्रताप सिंह का। मुंबई से मनोज बाजपेई, अनुराग कश्यप, यहां तक कि इरफान खान के युवा पुत्र बाबिल खान आगे आए तो पश्चिम बंगाल, राजस्थान, पंजाब, केरल, कश्मीर आदि राज्य व केंद्र शासित प्रदेश से लोगों का साथ मिला।
इस यात्रा को एक ठोस व्यवस्थित आकार लेना ही था लिहाजा देश के लेखक संगठन, सांस्कृतिक संगठन, छात्र युवा सब एक साथ बैठे और तय हुआ भगत सिंह के जन्मदिन 28 सितंबर से ये पैदल यात्रा राजस्थान के जिला अलवर से शुरू होगी और क्रमश: हर प्रदेश को कवर करते हुए 30 जनवरी गांधी जी के शहादत दिवस पर अपना पहला पड़ाव पूरा करेगी।
इसके पूर्व देश की राजधानी में 27 सितंबर यानी भगत सिंह के जन्मदिन की पूर्व संध्या पर एक सामूहिक आयोजन किया जाएगा जिसमें पूरी दिल्ली के तमाम अमन पसंद लोग, शिक्षक, छात्र, वैज्ञानिक, पत्रकार, संस्कृति कर्मी शामिल होंगे।
इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण एक 'गमछा शो' भी होगा। यात्रा की रूपरेखा तय करते वक्त ये महसूस हुआ कि अंधाधुंध निजीकरण और मशीनीकरण ने बेरोजगारी बहुत बढ़ाई है साथ ही समाज में श्रम की इज़्ज़त भी बहुत कम हुई है।
इसलिए यात्रा में हाथ के बने गमछे को एक प्रतीक के रूप में चुना गया कि कबीर और रैदास जैसे सुधारक इतने साहस के साथ सत्ता और ताकतवरों से सवाल इसलिए पूछ पाए क्योंकि वो किसी पर निर्भर नहीं थे और जीवन भर अपनी मेहनत से उपजी आय ने ही उन्हें एक साथ इतना विनम्र और स्वाभिमानी बनाया।
गमछा एक प्रतीक है जो इस अमानवीय मशीनीकरण के विरुद्ध श्रम के सम्मान को भी जाग्रत करेगा। एक श्रमिक की आत्मनिर्भरता इस अवसाद, बेरोजगारी और नफरत के समय में उम्मीद की किरण की तरह है।
देश भर में चित्रकार यात्रा के मैसेज के पोस्टर बना रहे हैं, गायक गीत लिख रहे हैं, संस्कृति कर्मी नाटक तैयार कर रहे हैं। कबीर, रैदास, गांधी, भगत सिंह, बुल्ले शाह, विवेकानंद सहित इतिहास के मुहब्बत भरे नायकों को खंगाला जा रहा है, कर्नाटक से बासव, तमिलनाडु से पेरियार, महाराष्ट्र से फुले और पंजाब से बुल्ले शाह को दोहराया जा रहा है। दूर दूर से लोग यात्रा में शामिल होने के लिए रजिस्ट्रेशन फॉर्म भर रहे हैं।
हालांकि रजिस्ट्रेशन इतना आसान नहीं है, यात्राा के रजिस्ट्रेशन की यानी यात्रा पर चलने की कुछ बुनियादी शर्तें और आचरण भी तय हैं - नशा वर्जित है, लोगों को सुनना ज़्यादा है, सादगी सबसे बड़ा मूल्य है, आदि।
युवाओं की एक टोली ने पूरी वेबसाइट बना डाली है। सोशल मीडिया पेज है। यहां यात्रा के बारे में हर जानकारी उपलब्ध है।
यूं तो ये पूरी यात्रा गांव गांव खाने और रहने पर ही आश्रित है मगर अतिरिक्त खर्च के लिए देश भर के हथकरघा बुनकरों से आयोजकों ने गमछे मंगाए हैं। यात्रा के हमदर्द लोगों को वो गमछे उढ़ाते हैं। और अपील करते हैं वो समर्थ व्यक्ति इस यात्रा को 10 या 15 जितने गमछे चाहे खरीद के दे दे। इससे बुनकरों के पास एक सीधी आय भी पहुंच रही है। और यात्रा के दौरान खरीदने में असमर्थ लोगों को यात्री गमछा बेहद टोकन अमाउंट पर दे सकेंगे।
अब तक इस यात्रा को देश के कई चर्चित लोगों के समर्थन वीडियोज प्राप्त हो चुके हैं कि सोशल मीडिया और वेबसाइट देखने वाली टीम को उसे फिलहाल रोकना पड़ा है।
हर प्रदेश की यात्रा की तय तिथियां और रूट हैं मगर इसके साथ ही हर प्रदेश और उनके जिले कई एक दिवसीय यात्राएं भी निकलते रहेंगे।
इस यात्रा की खास बात है कि अपने हर रूट के महत्वपूर्ण कवि, लेखक ,समाज सुधारक, आजादी के आंदोलन के नायक व नायिका के घर कार्य क्षेत्र या प्रतीक स्थल से होकर गुजरेगी और इस संदेश के साथ अपने पड़ाव पर पहुंचेगी कि इस तरह कतरा कतरा संघर्षों ने मिल कर इस देश और समाज को प्रेम और समानता के साथ बुना था। और हम इस विविधता को, इन अमूल्य संघर्षों और बलिदानों को, इन मेहनतकशों के श्रम को और इस खूबसूरत मुल्क के प्रेम को बचाएंगे। हम सदा "ढाई आखर प्रेम" के गीत गायेंगे।
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