लैटिन अमेरिका को क्यों एक नई विश्व व्यवस्था की ज़रूरत है?
दुनिया यूक्रेन में युद्ध का अंत देखना चाहती है। हालाँकि, नाटो देश यूक्रेन को हथियारों की खेप बढ़ाकर युद्ध को लम्बा खींचना चाहते हैं और इस घोषणा के साथ कि वे "रूस को कमजोर" बनाना चाहते हैं। यूक्रेन को अमेरिका पहले ही 13.6 अरब डॉलर का आवंटन कर चुका है। बाइडेन ने अभी-अभी 33 बिलियन डॉलर और मांग की है। तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो, 2030 तक विश्व में फैली भूख को समाप्त करने के लिए प्रति वर्ष 45 बिलियन डॉलर की आवश्यकता होगी।
भले ही बातचीत हो और युद्ध समाप्त हो जाता है, फिर भी इन हालत में कोई वास्तविक शांतिपूर्ण समाधान संभव नहीं होगा। ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह विश्वास करने के लिए हमें प्रेरित करता हो कि भू-राजनीतिक तनाव कम हो जाएगा, क्योंकि यूक्रेन के युद्ध के इर्द-गिर्द पश्चिम, चीन के विकास को रोकना चाहता है, रूस के साथ उसके संबंधों को तोड़ने और ग्लोबल साउथ के साथ चीन की रणनीतिक साझेदारी को समाप्त करने का प्रयास भी करना चाहता है।
मार्च में, यूएस अफ्रीका कमांड (जनरल स्टीफन जे टाउनसेंड) और दक्षिणी कमान (जनरल लौरा रिचर्डसन) के कमांडरों ने अमेरिकी सीनेट को अफ्रीका के साथ-साथ लैटिन अमेरिका और कैरिबियन में चीनी और रूसी प्रभाव में वृद्धि के कथित खतरों के बारे में चेतावनी दी थी। जनरलों ने सिफारिश की थी कि संयुक्त राज्य अमेरिका इन क्षेत्रों में मास्को और बीजिंग के प्रभाव को कमजोर करे। यह नीति संयुक्त राज्य अमेरिका के 2018 के राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत का हिस्सा है, जो चीन और रूस को अपनी "केंद्रीय चुनौतियों" के रूप में प्रस्तुत करता है।
कोई शीत युद्ध नहीं
लैटिन अमेरिका कोई नया शीत युद्ध नहीं चाहता है। यह क्षेत्र पहले से ही दशकों के सैन्य शासन और तथाकथित "कम्युनिस्ट खतरे" पर आधारित आत्मसंयम या कठोर आर्थिक नीतियों की राजनीति से पीड़ित है। दसियों हज़ार लोगों ने अपनी जान गंवाई और कई दसियों हज़ारों को कैद, प्रताड़ित और निर्वासित किया गया, सिर्फ इसलिए कि वे संप्रभु देश और सभ्य समाज बनाना चाहते थे। यह हिंसा लैटिन अमेरिका पर अमेरिका द्वारा थोपे गए शीत युद्ध का ही एक उत्पाद थी।
लैटिन अमेरिका शांति चाहता है। शांति केवल क्षेत्रीय एकता पर बनाई जा सकती है, एक प्रक्रिया जो 20 साल पहले लोकप्रिय विद्रोह के एक चक्र के बाद शुरू हुई थी, जो नवउदारवादी प्रेरित आर्थिक नीतियों की सुनामी के खिलाफ थी, जिसके कारण प्रगतिशील सरकारों का चुनाव हुआ: इनमें वेनेजुएला (1999), ब्राजील (2002), अर्जेंटीना (2003), उरुग्वे (2005), बोलीविया (2005), इक्वाडोर (2007), और पराग्वे (2008) शामिल है। क्यूबा और निकारागुआ से जुड़े इन देशों ने क्षेत्रीय संगठनों का एक समूह बनाया था: 2004 में बोलीवियन्स एलायंस फॉर पीपल ऑफ साउथ अमेरिका - पीपल्स ट्रेड ट्रीटी (ALBA-TCP), 2008 में यूनियन ऑफ साउथ अमेरिकन नेशंस (UNASUR), और 2011 में कम्यूनिटी ऑफ लैटिन अमेरिकन एंड कैरेबियाई स्टेट्स (सीईएलएसी) का गठन किया गया था। इन प्लेटफार्मों का उद्देश्य क्षेत्रीय व्यापार और राजनीतिक एकीकरण को बढ़ाना था। इन लाभों के खिलाफ वाशिंगटन की आक्रामकता बढ़ी, जिसने कई सदस्य देशों में सरकारों को उखाड़ फेंकने और वाशिंगटन के हितों के अनुरूप क्षेत्रीय ब्लॉकों को विभाजित करके प्रक्रिया को कमजोर करने की कोशिश की थी।
ब्राज़ील
अपने आकार और राजनीतिक प्रासंगिकता के कारण, ब्राजील इन शुरुआती संगठनों में एक प्रमुख खिलाड़ी था। 2009 में, ब्राजील ने रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के साथ मिलकर ब्रिक्स का गठन किया था, जो वैश्विक व्यापार और राजनीति सत्ता के संबंधों को पुनर्व्यवस्थित करने के लक्ष्य के साथ एक नया गठबंधन था।
ब्राजील की भूमिका से व्हाइट हाउस खुश नहीं हुआ, जिसने - सैन्य तख्तापलट की क्रूरता से परहेज करते हुए - ब्राजील के अभिजात वर्ग के क्षेत्रों के साथ गठबंधन कर एक सफल ऑपरेशन चलाया, जिसके जरिए 2016 में राष्ट्रपति डिल्मा रूसेफ की सरकार को उखाड़ने और 2018 में राष्ट्रपति लूला की गिरफ्तारी का कारण बना (जो उस समय राष्ट्रपति चुनाव में चुनाव का नेतृत्व कर रहे थे) इसके लिए अमेरिका ने ब्राजील की विधायिका, न्यायपालिका प्रणाली और मीडिया का इस्तेमाल किया। दोनों नेताओं पर ब्राजील की राज्य तेल कंपनी से जुड़ी भ्रष्टाचार योजना का आरोप लगाया गया था, और ब्राजील की न्यायपालिका द्वारा ऑपरेशन कार वॉश के नाम से एक जांच शुरू हुई थी।
ऑपरेशन कार वॉश के प्रमुख अभियोजक के टेलीग्राम चैट के बड़े पैमाने पर लीक होने के बाद उस जांच में अमेरिकी न्याय विभाग और एफबीआई दोनों की भागीदारी का पता चला था। हालांकि, अमेरिकी हस्तक्षेप का खुलासा होने से पहले, लूला और डिल्मा को सत्ता से हटा कर ब्राज़ील में दक्षिणपंथी सत्ता में वापसे आ गए थे; ब्राजील ने अब उन क्षेत्रीय या वैश्विक परियोजनाओं में अग्रणी भूमिका नहीं निभाई जो यू.एस. शक्ति को कमजोर कर सकती थीं। ब्राजील ने यूनियन ऑफ साउथ अमेरिकन नेशंस (UNASUR), और कम्यूनिटी ऑफ लैटिन अमेरिकन एंड कैरेबियाई स्टेट्स (CELAC) की सदस्यता को छोड़ दिया था, और केवल औपचारिक रूप से ब्रिक्स में बना रहा - जैसा कि भारत के मामले में भी है – जो वैश्विक दक्षिण के रणनीतिक गठबंधनों के परिप्रेक्ष्य को कमजोर करता है।
बदलाव की लहरें
हाल के वर्षों में, लैटिन अमेरिका ने प्रगतिशील सरकारों की एक नई लहर का अनुभव किया है। क्षेत्रीय अखंडता का विचार वापस लौट आया है। चार साल तक बिना शिखर की बैठक के सीईएलएसी ने सितंबर 2021 में मैक्सिकन राष्ट्रपति एंड्रेस मैनुअल लोपेज़ ओब्रेडोर और अर्जेंटीना के राष्ट्रपति अल्बर्टो फर्नांडीज के नेतृत्व में फिर से खुद को संगठित किया है। क्या गुस्तावो पेट्रो मई 2022 में कोलंबियाई राष्ट्रपति का चुनाव जीतेंगे, और लूला अक्टूबर 2022 में ब्राजील के राष्ट्रपति पद का चुनाव फिर से जीतेंगे, दशकों में पहली बार, लैटिन अमेरिका की चार सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं (ब्राजील, मैक्सिको, अर्जेंटीना, और कोलंबिया) सेंटर-लेफ्ट, विशेष रूप से लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई एकीकरण के समर्थकों द्वारा शासित होगा। लूला ने कहा है कि अगर वह राष्ट्रपति पद जीत जाते हैं, तो ब्राजील सीईएलएसी में वापस आ जाएगा और ब्रिक्स में सक्रिय रुख फिर से शुरू कर देगा।
ग्लोबल साउथ, इस साल के अंत तक फिर से उभरने और विश्व व्यवस्था के भीतर अपने लिए जगह बनाने के लिए तैयार हो सकता है। इसका प्रमाण एकमत की कमी है जिसने रूस पर प्रतिबंध थोपने के लिए नाटों को बड़ा गठबंधन बनाने के में मदद की है। नाटो की इस परियोजना ने ग्लोबल साउथ के आसपास एक प्रतिक्रिया पैदा कर दी है। यहां तक कि युद्ध की निंदा करने वाली सरकारें (जैसे अर्जेंटीना, ब्राजील, भारत और दक्षिण अफ्रीका) नाटो की एकतरफा प्रतिबंध नीति से सहमत नहीं हैं और शांतिपूर्ण समाधान के लिए बातचीत का समर्थन करना पसंद करती हैं। 1955 में इंडोनेशिया के बांडुंग में आयोजित सम्मेलन में शुरू की गई पहल से प्रेरित गुटनिरपेक्ष आंदोलन को फिर से शुरू करने के विचार को कई हलकों में प्रतिध्वनि मिली है।
उनकी मंशा सही है। वे वैश्विक राजनीतिक तनावों को कम करना चाहते हैं, जो देशों की संप्रभुता के लिए खतरा हैं और वैश्विक अर्थव्यवस्था को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। बांडुंग सम्मेलन की गैर-टकराव और शांति की भावना आज जरूरी है।
लेकिन गुटनिरपेक्ष आंदोलन तीसरी दुनिया के देशों द्वारा शीत युद्ध के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका और यूएसएसआर के बीच ध्रुवीकरण में एक पक्ष चुनने से इनकार करने के रूप में उभरा था। वे वाशिंगटन या मॉस्को में अपनी विदेश नीति तय किए बिना, अपनी संप्रभुता और दोनों प्रणालियों के देशों के साथ संबंध रखने के अधिकार के लिए लड़ रहे थे।
यह वर्तमान परिदृश्य नहीं है। केवल वाशिंगटन-ब्रुसेल्स कोण (और उसके सहयोगी) अपने तथाकथित "नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था" के साथ मिलान की मांग करते हैं। जो लोग गठबंधन नहीं करते हैं वे दर्जनों देशों (वेनेजुएला और क्यूबा जैसी पूरी अर्थव्यवस्थाओं को तबाह करने वाले) प्रतिबंधों से पीड़ित हैं, संपत्ति में सैकड़ों अरबों डॉलर की अवैध जब्ती (जैसा कि वेनेजुएला, ईरान, अफगानिस्तान, और रूस के मामले में हुआ है), आक्रमण और हस्तक्षेप जिसके परिणामस्वरूप नरसंहार युद्ध हुए (जैसे इराक, सीरिया, लीबिया और अफगानिस्तान में), और "कलर क्रांतियों" के लिए बाहरी समर्थन (2014 में यूक्रेन से 2016 में ब्राजील तक) किया गया है। मिलान/संरेक्षण की मांग केवल पश्चिम से आती है, चीन या रूस से नहीं।
मानवता को तत्काल चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे कि असमानता, भूख, जलवायु संकट और नई महामारियों का खतरा। उन्हें दूर करने के लिए, ग्लोबल साउथ को क्षेत्रीय गठबंधन वैश्विक राजनीति में एक नई बहुध्रुवीयता स्थापित करने में सक्षम होना चाहिए। लेकिन सनद रहे कि बदनाम और संदिग्ध ताकतों के पास मानवता के खिलाफ अन्य योजनाएं हो सकती हैं।
मार्को फ़र्नांडीज़ ट्राईकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च (जो इंटरनेशनल पीपल्स असेंबली का एक स्तंभ है) में एक शोधकर्ता हैं। वह नो कोल्ड वॉर कैम्पेन के सदस्य हैं और न्यूज ऑन चाइना (डोंगशेंग) के सह-संस्थापक और सह-संपादक हैं। वे शंघाई में रहते हैं।
यह लेख मॉर्निंग स्टार और ग्लोबट्रॉटर में प्रकाशित हो चुका है।
इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
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