तिरछी नज़र: सरकार जी के ‘मित्र’ पर आया संकट राष्ट्रीय संकट है
तस्वीर प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए। कार्टून सतीश आचार्य के X हैंडल से साभार
सरकार जी ने तो पहले ही कह दिया है, एक है तो सेफ है। अमरीका से आई रिपोर्ट से पहले ही डिक्लेअर कर दिया था कि वे एक को सेफ रखेंगे। सरे आम घोषणा कर दी थी, हज़ारों की भीड़ के सामने घोषणा की थी कि उनकी सरकार एक की सेफ्टी के लिए बनी है।
सरकार जी ने कभी नहीं कहा, एक सौ चालीस करोड़ सेफ हैं। इसलिए यह मत सोचो, सरकार जी हर एक व्यक्ति को सेफ रखेंगे। सरकार जी तो सिर्फ एक को सेफ रखेंगे। वह एक कौन है, सबको पता है। क्या कहा? आपको नहीं पता? क्यों मज़ाक़ करते हो!
मैं जानता हूँ, आपको पता है। आप जान कर भी अनजान बन रहे हो। आप जानते हुए भी उसका नाम नहीं लेना चाहते हो। आप उसका नाम लेने से डरते हो। नहीं, नहीं, उसका नाम गब्बर सिंह नहीं है कि माएं उसका नाम ले कर पचास कोस तक बच्चों को डराती हों, कि सो जा बेटे, नहीं तो गब्बर सिंह आ जायेगा। ये नहीं, ये नहीं, उसका नाम तो कुछ और ही है।
मैं आपको एक हिंट देता हूँ। वह वही है जिसके हवाई जहाज में सरकार जी के बैठे होने की फोटो बहुत वायरल हुई थी। वह फोटो आज भी वायरल है। आपने वह फोटो नहीं देखी क्या? देखी तो है। मन ही मन मुस्करा रहे हो। पर उसका नाम जुबान तक नहीं लाओगे।
चलो मैं आपको एक और हिंट देता हूँ। वह वही है जिसके नाम सरकार जी ने सारे एयरपोर्ट कर दिए हैं, पोर्ट कर दिए हैं, टोल टैक्स के बूथ कर दिए हैं। जिसके नाम देश के जंगल कर दिए हैं, पहाड़ कर दिए हैं, मुंबई में धारावी कर दी है। नाम अभी भी नहीं याद आया। मुझे पता है कि आपको उसका नाम याद है पर जुबान पर नहीं लाओगे।
अरे वही, जिसका नाम हिंडनबर्ग रिपोर्ट में आया था। जिसका नाम ऑफ़ शोर कम्पनियों से पैसा लेने में आया था। क्रोनी कैपेटिलिज़्म में आया था। इन्वेस्टर्स को धोखा देने में आया था। पर सेबी ने उसको तब भी बचाया था आज भी बचा रही है। सरकार जी ने भी उसे तब भी बचाया था, अब भी बचा लेंगे।
वो कोई और नहीं, वो वही है जिसके खिलाफ बोलने, लिखने पर न जाने कितने पत्रकारों को, मानहानि के, करोड़ों के नोटिस मिले थे। जिसका नाम लेने पर नेताओं की संसद सदस्यता गई थी। जेल मिली थी। पर नहीं, आपको उसका नाम समझ नहीं आया। आप इतना ध्यान कहाँ रखते हैं। वैसे भी इन सबके खिलाफ केस तो कुछ और ही बनाये गए थे।
अब अमरीका ने उस पर एक केस ठोका है। रिश्वत देने का केस। अमरीका के कोर्ट का कहना है कि उसने सौर्य ऊर्जा से प्राप्त बिजली की सप्लाई का ठेका लेने के लिए भारत के अफसरों को रिश्वत दी। यह अमरीका भी ना अजीब है। रिश्वत देने वाला भारतीय, रिश्वत लेने वाले भारतीय, तो तुम क्यों चौधराहट दिखा रहे हो। अपने कोर्ट में केस कर रहे हो। और हमारे भारत में तो ऐसे ही काम होता है। कर लो क्या करोगे। कोई एक माई का लाल ढूंढ कर दिखा दो जिसने कभी रिश्वत न दी हो।
अमरीकी कोर्ट ने केस बनाया है और वारंट इशू किया है कि अडानी की कम्पनी ने, हे ईश्वर, मुँह से नाम निकल ही गया। इस नासपीटी जुबान को सरकार जी माफ करें। अब जब एक बार नाम जुबान से निकल ही गया है तो अब आगे ले ही सकते हैं। तो अमरीकी कोर्ट ने कहा है कि अडानी की कम्पनी ने अमरीकी निवेशकों से पैसे ले कर रिश्वत दी। यह तो सचमुच ही गलत बात है। क्या भारतीयों से कम कमाई की है जो रिश्वत देने के लिए अमरीकियों से पैसे लेने की जरूरत पड़ गई।
अगर भारतीयों के पैसे से रिश्वत दी होती तो कोई भी भारतीय चूँ नहीं करता। हमें रिश्वत लेने देने से कोई दिक्कत नहीं है। ठीक है, कानून हमारे यहाँ भी है पर हम उसको लागू नहीं करते हैं। अब अडानी जी पर आरोप है कि करीब बाइस हज़ार करोड़ रुपये रिश्वत में दिए गए। तो क्या हुआ, हम एक सौ चालीस करोड़ से ज्यादा की आबादी हैं। करीब पंद्रह रुपये प्रति व्यक्ति ही तो पड़ा ना। तो फिर इतना शोर क्यों। सरकार जी ठीक ही चुप हैं। जब सरकार जी सबके अकाउंट में पंद्रह पंद्रह लाख डलवाएंगे तब हम सब भारतीय अपने अकाउंट से पंद्रह पंद्रह रुपये निकाल कर अमरीकियों को वापस कर देंगें। क्यों ठीक है ना।
वैसे अडानी जी ने ठीक ही किया। अमरीकियों से पैसा लिया और भारतीयों में बांट दिया। भारतीयों को रिश्वत दी। मतलब अमरीका से पैसा ला कर भारत में बांटा। भारत की जीडीपी बढ़ाने में सहयोग दिया। अरे भई, जिसको भी रिश्वत मिलेगी, घर में थोड़ी ना रखेगा। खर्च करेगा। जमीन जायदाद खरीदेगा। सोना और हीरे जवाहरात खरीदेगा। लम्बी, बड़ी गाड़ी लेगा। घूमेगा, फिरेगा, खायेगा, पियेगा। देश की जीडीपी में योगदान देगा। देश की जीडीपी पांच ट्रिलियन तक पहुंचाएगा।
तो मैं तो यह सोचता हूँ कि अडानी जी का इस रिश्वत वाली देशभक्ति के लिए केस वगैरह बनाने की बजाय, सम्मान करना चाहिए। सरकार जी अपने मित्र को कुछ पदम् विभूषण, भारत रत्न वगैरह दे दें, तो अमरीका खुद ही समझ जायेगा। सरकार जी अपने एक मित्र अडानी के लिए दूसरे मित्र डोनाल्ड ट्रम्प से बात भी कर सकते हैं। मित्रता की परख संकट के समय ही होती है और यह तो एक राष्ट्रीय संकट है।
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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